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डॉ. वेदज्ञ आर्य के हाइकु

 

 

हाइकु

तपन देख
आँधी ने खोल दिये
वर्षा के द्वार।

माँ दिला दो न
मुझे एक मुखौटा
जीना सीख लूँ।

बुझा न सकी
बढ़े दामों की प्यास
वर्षा ऋतु भी।

बिजुरी नहीं
छुरी लपलपाती
अन्धी राहों में।

नभ-सर में
करते जल क्रीड़ा
मेघ-मतंग।

रच अल्पना
चली बक-पंक्तियाँ
नीलाम्बर में।

पथराव से
होता घायल सत्य
विपक्षी नहीं।

6  अक्तूबर 2008

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