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विकास परिहार के हाइकु

जन्म- ४ अगस्त १९८३ को मध्य प्रदेश के गुना जिले के राघोगढ़ कस्बे में जन्म।

कार्यक्षेत्र- सन २००० से सन २००६ तक भारतीय वायु सेना को अपनी सेवाएँ दीं। फिर पत्रकारिता की समर भूमि मे उतरने के बाद रेडियो से जुड़े। साथ ही साथ साहित्य मे विशेष रुचि है और नाट्य गतिविधियों से भी जुड़े हुए हैं।

शिक्षा- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविध्यालय भोपाल से पत्रकारिता विषय में स्नातक।

ई मेल- vikas.parihar@yahoo.com

 

 

 

हाइकु 

विधि का लेख,
लिखता है ईश्वर
झेले इंसान।

घने अंधेरे,
में चमके प्रकाश
और अधिक।

करते जाओ,
पाने की मत सोचो
जीवन सार।

दर-ब-दर,
ठोकरें खाता हुआ
घूमता सच।

जीवन नैया
मझदार में डोले,
सँभाले कौन?

रंग बिरंगे
रंग संग लेकर,
आया फागुन।

काँटों के बीच
खिलखिलाता फूल,
देता प्रेरणा।

भीतरी कुंठा
नयनों के द्वार से
आई बाहर।

खारे जल से
धुल गए विषाद,
मन पावन।

मृत्यु को जीना
जीवन विष पीना
है जिजीविषा

टेढ़े रहो तो
रहता है संसार
सदैव सीधा

मन की पीड़ा
छाई बन बादल
बरसी आँखें

चलती साथ
पटरियाँ रेल की
फिर भी मौन

मीरा का प्रेम
सच होते हुए भी
रहा अधूरा

सितारे छिपे
बादलों की ओट में
सूना आकाश

तुमने दिए
जिन गीतों को स्वर
हुए अमर

सागर में भी
रहकर मछली
प्यासी ही रही

 

४ अगस्त २००८

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