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काव्य संगम

काव्य संगम के इस अंक में प्रस्तुत है भारत के राष्ट्रपति आ.प.जै. अब्दुल कलाम की तमिल कविता देवनागरी लिपि में, हिन्दी रूपांतर किया है कैप्टन गोपी सिंह और साथियों ने।

विश्व के जानेमाने वैज्ञानिकों में डा आ प जै अब्दुल कलाम का नाम आदर के साथ लिया जाता है। भारत में इन्हें भारतीय प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम के पितामह के रूप में जाना जाता है। भारतीय रक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए उन्हें २५ नवम्बर १९९७ को भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से अलंकृत किया गया। अक्तूबर १९६८ में राष्ट्रीय एकता के लिये उन्हें इंदिरागांधी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है और १९९० में उन्हें पद्म विभूषण द्वारा सम्म्मनित किया गया था। भारत के राष्ट्रपति पद पर सुशोभित अब्दुल कलाम के विषय में बहुत कम लोग यह जानते हैं कि वे एक सहृदय कवि और वीणा वादक भी हैं। यहाँ प्रस्तुत है उनकी एक कविता जो भारत के प्रति उनके प्रेम सम्मान और उत्तदायित्वपूर्ण भावनाओं को प्रकट करती है।


देशिय वन्दनम्

सुतन्तिरम एयुचियिन् वेल्वियिले – एन्गल्
पुन्निय देशत्तिन विडुदलइ णाल्
अन्नियर आटिचयइ इरक्कि विट्टु – एन्गल्
इन्दिय कोडियिनइ एट्ट्रि विट्टोम्
शिदरि किडन्द शिरुनिलन्गल्
भारत नाडाइ ओण्डु पट्टु
वेण्डदु इणिय सुतन्तिरमे
कण्डदु इणिय सुतन्तिरमे
मक्कलिन् मनत्तिल मगिय्युचि वेल्लम्
मापेरुम् तलइवर्गल् उवगइ कोण्दार्
माण्णिण् मक्कल् अरसाल् – एन्गल्
मानिलम् पून्डदु विय्या कोलम्
मुरसुगल् मत्तलम् ओलिक्कइयिले
मट्रोरु केल्वि एयुन्दगे
विडुदलेइ वेल्विक्कु वित्तिट्ट
वित्तिकन गान्धि महान एन्गे
मक्कल्लिन् मनत्तइ ओरुन्गिन्नइत्तु – इन्द
मापेरुम साधनेइ निगेय्त्ति वेइत्त
तण्णिगर् अट्र तलइवन् एन्गे एन्डु
ओडिन्नर तेडिन्नर मामक्कल्
देशत्तिन् तलइनगर उवगयिले – आन्गे
वन्गत्तिन वीदिगल्लिल् रत्त वेल्लम् कारणम्
पिरिविनेइ नन्जु उल्लम् – इन्द
उल्लन्गल् इनेइन्दिड गान्धि महान
उन्नत अरपोर् नडति निन्ड्रार्
अन्द उन्नत उल्लत्तिन इन्गोर्
इरन्डाम् लटिचयम् समेइत्तु वेइत्तेन्
एन्गल् इन्दिय उल्लन्गल् एय्युच्चिउटु
तिट्टन्गल् पर्पल सेयल् पेरवे
सीरिय उल्लत्तेइ कोडुत्तिडुवाय
तन्निलुम् देश्म पेरिदेन्ड्र – अन्द
तारग एण्णत्तेइ एट्ट्रिडुवाय

देश मेम्पाडु तिट्टन्गल् – पल
दिशइगलुम् तोडन्गि निगएत्तिडवे – एन्गल्
तलेइवर्गल् चितनेइ वलुत्तुपडुत्तु
पिरिविनेइ एण्णन्गल् तुरत्ति विट्टु
उल्लन्गल् इनइक्कुम उत्तमत्तेइ – एन्गल्
मदगुरु मणन्गलिल् विदेइत्तिडुवाय
इनिवरुम् इलेइन्नर समुदायम् वाय
वलम् पेट्ट्र नाटिटनेइ उरुवाक्क – एन्गल्
चिन्दिय वेर्वइन् उयप्पिनिले
चिन्तनइ सेयल पेर वाय्तिडिवाय

 

देश वन्दना

भव्य वह दृश्य था
स्वतंत्र भारत के जन्म का
मध्य रात्रि को
दो सदियों के शासक का ध्वज उतरा था
राष्ट्रगान के मध्य
तिरंगा लाल किले पर फहराया
स्वतंत्र भारत के
प्रथम स्वप्न का उदय हुआ था।
चारों तरफ
फैला हुआ
जब हर्ष और आनंद था
करूण पुकार थी एक,
कहां हैं राष्ट्रपिता?
श्वेत वस्त्रधारी पुण्यात्मा,
दुःख दर्द में डूबी हुई थी
जहां घृणा
और अहम् से उपजा
जातिगत संघर्ष था।
राष्ट्रपिता, महात्मा,
नंगे पांव चले
शान्ति और सद्भाव के लिए
गलियों में बंगाल की
उस धन्य आत्मा की
शक्ति से प्रेरित हो
मैं करूं प्रार्थना,
कब होगी उत्पत्ति दूसरे स्वप्न की?
जन जन का मन
चिंतनमय हो
उनके विचार फिर हो पाए साकार
जन और उनके प्रतिनिधियों में बोध जगे
राष्ट्र व्यक्ति से ऊपर है हर बार।
देश के नेतृत्व को दो शक्ति
राष्ट्र को शान्ति
और समृद्धि का वर दो
कोटि कोटि जन में 'मन की एकता' लाए
यह सामथ्र्य हमारे धर्म गुरूओं को दो।
हे सर्वशक्तिमान,
हम करें परिश्रम, विकासशील से
विकसित हो जाए,
देशवासियों को यह वर दो
जन्म ले दूसरा स्वप्न हमारे पसीने से
हमारे नवयुवाओं को विकसित भारत दो।

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