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दिलाता रहा याद
रह गया है कुछ
सतत अधूरा।


रश्मि बड़थ्वाल की क्षणिकाएँ

ज्ञात हुई
बुरे दिनों में
अच्छे दिनों की कीमत।

हे प्रभु
कितने अधर्म हुए
धर्म के नाम पर!

 

रखे काग़ज़ पर
काले-काले शब्द
मन में उग आए
कपास से हल्के
बर्फ़ से उजले फूल।

 

सैंकड़ों साल के
युद्ध की थकान है
मेरे भीतर
और हज़ारों साल तक
लड़ते रहने की ऊर्जा भी।

 

साथ हों
असह्य दबाव
और एकाकीपन
तब लेखनी हो जाती है
साँस लेने का साधन।

मैं तिनके-तिनके में उगूँगी
तेरे सख्त तलवे सहलाऊँगी
और बार-बार तुझे याद दिलाऊँगी
कि तू मनुष्य है।

तुमने आँकड़े जुटाए
मैंने अनुभव
साथ चले हम
समानांतर रेखाओं की तरह।

रोने की सामर्थ्य चुक गई
तब मैंने
सीख लिया दर्द पर हँसना।

१०

संबंधों के शव ढोते
करते रहे आजीवन
भरा-पूरा जीवन
जीने का ढोंग

 

११

कुछ सपने
आँखों में उगाते नहीं
करकते हैं
पलकों के भीतर-भीतर।

 

१८ फरवरी २००८

१२

तुम कितने महान हो
तुम्हारे हाथ में तलवार भी थी और सुई भी
लेकिन तुमने गर्दन उड़ाने की बजाय
केवल मेरी पलकें और होंठ सिले।

 

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