अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

सीमा -१

तुमने सीमा बना ली है
मैंने तोड़ दी है सीमाएँ
तुम गमों में कैद हो
मैं गमों के लिये आज़ाद हूँ..


 

राजीव रंजन प्रसाद की क्षणिकाएँ

सीमा -२

ये मेरा दिल था
और तुम्हारे साथ मुहब्बत का धरातल
सरसों का खेत हो गया था
बीचों बीच ये कैसी सीमा
मेरा कलेजा काट कर सरहद बना दी है..

सीमा -३

तुम थे तो सपनों के पास सीमा नहीं थी
तुम नहीं हो
तो सपनों की सीमा तुम हो..

सीमा -४

आओ उदासियों
मेरे गिर्द अपने हाथ थाम
एक गोल घेरा बना लो
मुझे सीमा चाहिए है
पिंजरे का तोता उडान का सपना भूल चुका

सीमा -५

सीमा जब टूटेगी
तो क्या जीने की फिर भी सूरत होगी?
बाँध टूटते हैं
तो विप्लव आते हैं..

 

  १९ मई २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter