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१-
ज़िंदगी
क्या एक सुलगती माचिस नही
जो कुछ क्षण सुलगी
और फिर बुझ गयी।

1

संगीता स्वरूप
की सात क्षणिकाएँ
जिंदगी

२-
ज़िंदगी
एक ऐसी पहेली
जिसका हल ढूंढते- ढूंढते ही
ख़त्म हो जाती है
पर उत्तर नही मिलता।

३-
ज़िंदगी
शराब का जाम है
जो छलक कर
कुछ क्षण में
खाली हो जाता है।
 

४-
ज़िंदगी
गुलाब का पौधा है
जिसकी हर शाखा
कांटों से भरी हुई है
फिर भी एक गुलाब कि ख़ुश्बू
हर टहनी में बसी हुई है।
५-
ज़िंदगी
एक पेड़ है
जिस पर
कभी बहार
तो कभी पतझर है।
६-
ज़िंदगी
दिन का शोर है
जो
रात कि खामोशी में
डूब जाता है।

-
ज़िंदगी
ग़म का दरिया है
जिसमें
चन्द लम्हों के सुख के लिए
इंसान डूब जाता है।

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