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ये अमलतास के फूल नहीं

 

ये अमलतास के फूल नहीं
श्रमजीवी के मृदु सपने हैं

जब धूप रूप ले-लेती है
ये मदिर-मदिर
मुस्काते हैं
पछुआ के गरम थपेड़ों में
मिल गीत प्रेम के
गाते हैं

जोगी-सा अडिग देख इनको
सूरज के दीदे दुखने हैं

पत्ते भी साथ न देते जब
डालों पर जाते
बलिहारे
जुट जाते एक साथ ऐसे
एकता देख
लू भी हारे

दोपहर भले उगले आगी
ये तो अपनों के अपने हैं

सो जाता दिन जब पर्दों में
ये पथ पर,
लथपथ हिलते हैं
दुखिया भी नज़र उठाये जो
ये फूले -फूले
मिलते हैं

विपरीत उड़ाने हों कितनी
ये थके न जो, वे टखने हैं

- कल्पना मनोरमा
२९ अप्रैल २०१८

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