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कहाँ खो गया अमलतास





 

मेरे बचपन-की स्मृतियों में घुला बसा है अमलतास
गर्मी की छुट्टियों में खूब साथ रहा
बचपन की हर मस्ती और हर शरारत का
मूक गवाह है वह
घर वालों से छुपकर तपती गर्मी में,
नंगे पैर और जलते बदन, जब सैर पर निकलते
तो खूब साथ निभाता

धूप में खिलते रंगीन फूलों का
उस पर डाले झूलों का
जिंदगी के कई सवालों का
पंछियों के मीठे बोलों का
मूक गवाह है वो

अब,
जब कभी अपने गाँव में जाता हूँ
तो याद आता है वो बचपन और वो अमलतास
मगर अब बस बाकी है उसका मीठा अहसास
अब वहाँ कोई एक बड़ा मकान खड़ा है
जिसमें लोग रहते हैं,
पूछा कि कभी यहाँ एक अमलतास था
किसी ने कहा, हाँ वो ठूँठ तो हमने काट दिया
सुना तो ऐसा लगा मानो
मेरे जिस्म के हिस्से को ही किसी ने बाँट दिया

अब मैं बच्चों को किस अमलतास की बात बताऊँ
किस मुँह से उसकी याद दोहराऊँ
जिसने मुझे बचपन दिया, नया जीवन दिया
जिसने घोली मेरे जीवन में होली की मस्ती
आज उसका नामोनिशां तक नहीं है
उस अमलतास का जाना,
मानो नानी दादी जैसा कोई
लोरी सुनाते-सुनाते
खुद सो गया

आज के बच्चे तो हँसते हैं
एक पेड़ के लिए क्यों रोते हैं...
पूछते हैं, क्या पेड़ इनसान होता है
मैं कैसे समझाऊँ वह
तो भगवान से भी ऊपर होता है

चंद्रकांत जोशी
16 जून 2007

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