अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

घना कद्दावर अशोक
 

घना कद्दावर अशोक
बारह माह हरहराता, लहलहाता
किसी अनुशासित
द्वारपाल सा
चौकस कर्तव्य निभाता।

सहज नैसर्गिक सौंदर्य लिए
यह हर्षोल्लास का पेड़
अशोक पत्र से बने बन्धनवार
है मंगल कल्याण की मेड़।

सामान्य वनस्पति नही यह
फूल -फल -पत्र- बीज का औषधिगार
अपने मे समेटे
जादुई स्वास्थ्य अम्बार।

समृद्धि का कुबेर
अनुराग का मदन बाण
नकारात्मक ऊर्जा ध्वंसक
मंगल, धर्म संरक्षक ।

आदि से अंत तक
स्वर्ग से धरती तक
कालिदास से द्विवेदी तक
महक और विस्तार ।

रावण की नगरी मे
सीता थी सुरक्षित
क्योकि अशोक वाटिका
थी उसका सुरक्षा कवच ।

- मधु संधु
१ अगस्त २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter