अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

यह मत समझो
 

यह मत समझो वो खड़ा, रहता है बेकार।
वह अशोक है बाँटता, खुशियाँ बारम्बार॥

घर में वृक्ष अशोक का, कुछ महत्व है खास।
आती है शुभता सदा, खुशियों का हो वास॥

बरगद-पीपल जिस तरह, देते हैं आशीष।
उसी तरह देता हमें, वृक्ष अशोक अमीष॥

घर के द्वारे रोंपिए, वृक्ष अशोक का आप।
मिट जाएंगे एक दिन, सारे दुख-संताप॥

धर्म-कर्म में कीजिए, पत्तों का उपयोग।
फिर जीवन में आयगा, खुशियों का संयोग॥

इतनी सारी खूबियों, का है इसमें कोष।
मिटते वृक्ष अशोक से, सभी वास्तु के दोष॥

नियमित जल अर्पित करें, यदि अशोक को आप।
मिट जाएगा देखना, जीवन का हर श्राप॥

जिस घर में रहता सदा, प्यारा वृक्ष अशोक।
वहाँ कभी आता नहीं, किसी तरह का शोक॥

घर में लगता हो अगर, ऊर्जा है प्रतिकूल।
पौधा एक अशोक का, करता सब अनुकूल॥

- सुबोध श्रीवास्तव
१ अगस्त २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter