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बाँस की गुड़िया
 

हेलता तीयन (बाँस की सब्जी) राँधते हुए
अक्सर तुम कहा करती थी कि
मैं नहीं झुकता तुम्हारे सामने
तुम्हारी बातों को
अपनी बातों से काट देता हूँ
तब खीझती हुई
अनजाने ही तुम्हारी अँगुली कट जाती थी
और बार-बार
मेरे जिद करने पर भी
रुआँसी होती हुई तुम
अपनी अँगुली छुपा लेती थी,
रात को ढिबरी की रोशनी में
मुझे खाना खिलाते हुए
तुम्हारा मन
उसकी लौ की तरह
हिलता-डुलता रहता था
तुम्हें डर होता था कि
मेरी कोई स्वाद की बात
उस लौ को बुझा न दे
डरती हुई तुम मुझे
और अधिक प्यार करती थी,
रात जब चाँद उतर आता था
हमारे आँगन में
तुम उसके जूट से बुन लेती थी
मेरे लिए नींद की बोरियाँ
लोरियों की गठरी में लेटा हुआ
मैं ओस की बूँदों में घुलता था
खरगोश की नरम छुअन
पंडुकों के गीत
हाथियों की चिंघाड़
सिंह की दहाड़
मेरे अंदर सहजता और साहस को
और अधिक हरा करती थी, और

रात जब थक जाती थी
हमारी नींद में सपने बोते-बोते
मुर्गे की पहली बाँग में
मेरे हाथों आ जाती थी
दादाजी की कुदाल
कुदाल चलाते हुए
मैं झुका होता था खेत पर
तब भी तुम्हें शिकायत थी कि
मैं नहीं झुकता तुम्हारी बातों के सामने,
झुकना जबकि
सबसे कायरतापूर्ण क्रिया मानी गई है
हमारे गीतों में
तुम चाहती थी कि
मैं झुकूँ
तुम्हारी बातों के सामने
लेकिन तुम्हारी गुहार में नहीं थी
वह कायरता की माँग
जिसमें हमारे ही बीच के कुछ लोगों ने

झुकना स्वीकार किया था चंद सिक्कों के लिए
और आबा बिरसा को
दबोच लिया था गोरे दीकुओं ने
तुम्हारी गुहार में थी
हेलता के स्वाद को स्वीकारने की जिद
उसकी महक को प्रेम में रूपांतरित करने की जिद
और उसके लिए
अपने को होम कर देने की माँग
जो तुमने सीखा था बचपन के दिनों में
हरे पेड़-पौधों, जंतुओं
और वनस्पतियों के साथ
लुका-छिपी का खेल खेलते हुए,

उन दिनों जब कहीं नहीं था
हमारे शब्द-कोश में 'स्कूल'
तुमने पढ़ लिया था
जीने की गरिमा का पाठ
मेरी हर बात के सामने झुकने वाली
तुम कभी नहीं झुकी
हमारे पुरखों की अनगिनत शहादतों के बावजूद
दादाजी के शहीद हो जाने के बाद भी
तुम पिताजी को पीठ पर बेतराए हुए
अपनी जमीन पर कुदाल चलाती रही
ओ जियाईंग!
ओ मेरी बाँस की गुड़िया!
तुम्हारे गुजर जाने के दशकों बाद भी
वही कुदाल लिए हुए
पिताजी के साथ
खेत पर झुका हुआ हूँ
तुम्हें पता है
यह कायरतापूर्ण कारवाई नहीं
तन कर खड़े रहने की जिद है
उन लोगों के सामने
जो हमसे छीन लेना चाहते हैं
हमारी भाषा
हमारे गीत
और बाजुओं की गूँथी हुई
अखाड़े की
हमारी लयबद्ध प्रतिबद्धता।

अनुज लुगुन
१८ मई २०१५

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