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बाँसवन ने सन्धियाँ कीं
 
रोक कर
बहती हवा को
ढेर पत्ते फड़फड़ाये
बाँस वन ने सन्धियाँ कीं
बाँसुरी बजने न पाये

हर अकेला
बाँस अपने आप में
कुछ गा रहा है
पर पुरातन राग से वो
दूर होता जा रहा है

बढ़ रहा है शोर
कोई गीत कैसे गुनगुनाये

चाहिए तो ये
कि सब मिल
बाँसुरी में राग फूँकें
और इन अंधड़ हवाओं की
खड़े हो राह रोकें

इस छिछोरे समय में पर
कौन बंसी धुन बजाये

बह रही
पछुआ हवा
चिंगारियाँ सूखे वनों में
फूल कर फ़िर बाँस
लगता बदल देंगे निर्जनों में

मिटे खर-पतवार बँसवट में
चलो फिर छाँव आये

- डॉ॰ प्रदीप शुक्ल
१८ मई २०१५

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