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बेला महके बाग में
 

बेला महके बाग़ में, सौरभ सबको देत
भेद न जाने वो यहाँ, बाँटे स्वयं न लेत

रस-सुगंध के साथ ही, औषधि कर उपचार
पुष्प हमें ये सीख दें, परहित हो आचार

प्रिय लगते अति विष्णु को, अर्पण करते भक्त
मन-इच्छित पूरा करें, प्रेम भक्ति आसक्त

शुभ्र वर्ण के गुच्छ में, तारक सम धर रूप
आकर्षित सबको करे, क्या निर्धन क्या भूप

तेल- सुगंध व अर्क से, बनते कई स्वरूप
रोगों का उपचार हो, लोग सँवारें रूप

घर-आँगन में एक भी, पौध मोगरा रोप
महके मन ऊर्जा भरे, दूर उदासी कोप

- ज्योतिरमयी पंत
२२ जून २०१५

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