अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

बागों बीच बहार
 

बेला खिल-खिल दे रहा, बागों बीच बहार
फटिक शिला पर बैठ के, सिया करें मनुहार

तारक जैसा है खिला, हरे पात के बीच
मादक खुशबू छोड़ता, लेता सबको खींच

सकुचाई सी रूपसी, बैठी शीश झुकाय
हरे ढाक के पात में, कर गजरा महकाय

मधुर चाँदनी बाग की, उर साजन का साथ
बैठ हिंडोला झूलती, ले हाथों में हाथ

आम फाँक सी आँख में, सोहे कजरा धार
जुड़े में बेला खिला, गल चम्पा का हार

जवा-कुसुम के साथ में, बेला सुमन मिलाय
राम सिया को दे रहे, सुंदर हार बनाय

झुरमुट बेला के खड़ी, सीता रहीं लजाय
श्याम सलौने राम पर, बैठीं हृदय लूटाय

चटकी बेला की कली, सौरभ महका बाग
पिय परदेशी की सखी, खबर सुनाता काग

कानन कन्या के लिए, सुमन बने सिंगार
नख सीख शोभा पा रहे, मौलसिरी कचनार

- कल्पना मिश्रा बाजपेयी
२२ जून २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter