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बेले की कलियाँ
 

गरमियों की धूप में,
उदास बैठी मोगरा
पावस के दिन आये,
खिल जाये चेहरा
झुरमुराती हवाओं में,
कुम्हलाती मोगरा
रात की ओस में,
नहा रही मोगरा
सुर्य की
सुनहरी किरन में सफेद चादर
ओढ़ कर
मुस्कुरा रही मोगरा
पर्ण में खामोश पुहुप को छिपाये
बैठी है मोगरा
कितनी अनंत खुशबू लेकर बैठी मोगरा
मिल जाये उसकी जो खुशबू
सज जाये सेहरा
देख भोर माली जैसे चुने कलियाँ
किस गले का हार बनूँगी
किस पग पर डालू डेरा
गरमियों की धूप में उदास बैठी मोगरा

- संतोष कुमार
२२ जून २०१५

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