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बेला जुही के फूल
 

मोगरा, बेला, जुही के फूल
बिन तुम्हारे
बन गये हैं शूल

ओस में से
लगी उठने भाप
सुखद ऋतु भी लग रही अभिशाप
गुदगुदाती भावभीनी याद
आज मन को दे रही संताप
हुई हर
अनुकूलता प्रतिकूल

बह रही
कलकल नदी की धार
और झरते फूल हरसिंगार
खिल रहे जो अमलतास-पलाश
लग रहे जलते हुए अंगार
दिख रही उडती
चतुर्दिक धूल

- धनञ्जय सिंह
१५ जून २०१५

 

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