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मोगरा मादक और हुआ
 

ज्यों ज्यों भीगी रात
मोगरा मादक और हुआ

यूँ तो
सई-साँझ से भेजे
गंधों के न्योते
इतने सहज
कहाँ होते पर
ऐसे समझौते

साँस-साँस में बिखर गंध ने
मन का छोर छुआ

पुरवा
गठरी भरी नींद के
टोने मार गई
बेला खोजे
गंध-मंत्र से
इसकी काट नई

रही-सही सब कसर निकाले
द्वारे का महुआ

- डा० जगदीश व्योम
१५ जून २०१५

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