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बेला रहा महकता आँगन
 

बेला रहा महकता आँगन
सारी-सारी रात
चुटकी-चुटकी लिये गंध की
प्यार भरी सौगात

देख धवल फूलों की आभा
धूमिल हुए सितारे
तिरती हो ज्यों शांत लहर में
पावन दीप कतारें

रिमझिम बूँदें लगीं परसने
कोमल-कोमल गात

साँझ गया मौसम कानों में
चुपके से क्या कहके
लेकर नयी ताजगी पुरवा
बिना बात ही बहके

चली सजाकर पलकों पर
फिर सपनों की बारात।

रूप, रंग, रस, गंध लुटाती
रही रात भर कलियाँ
कोई लूटे एक आँजुरी
कोई भर-भर डलियाँ

हिस्से में किसके क्या आये
ये किस्मत की बात।

कोई यों छू गया कि जैसे
छुए पवन पंखुड़ियाँ
रेशा-रेशा लगीं बिखरने
अहसासों की लड़ियाँ

मन का आँगन रही भिगोती
सुधियों की बरसात।

- मधु शुक्ला
१५ जून २०१५

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