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जीवन हो बेला-सा
 

जीवन अकुंठ अलबेला सा
सुरभित, मादक हो बेला सा

सुन्दर अनुपम सुमन सद्दश्य
बहे ज्यों स्निग्ध पवन अद्दश्य
भावों का उमड़े रेला सा
सुरभित, मादक हो बेला सा

खग ज्यों भरें उन्मुक्त उड़ान
पुरोग्रामी हो प्रचल प्रयाण
हर पल इक नया नवेला सा
सुरभित, मादक हो बेला सा

अंग से प्रस्फुटित किरण किरण
जीवन तत्वों में बिखर बिखर
जीना हो जाए खेला सा
सुरभित, मादक हो बेला सा

बेला की लघुता चाहे हो
आडी तिरछी सी राहे हों
पर न लगे एक झमेला सा
सुरभित, मादक हो बेला सा

- ओम प्रकाश नौटियाल
१५ जून २०१५

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