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बेला खिले आधी रात
 

एक तोते से मैना कहे सारी रात
सुनो फूल बेला खिले आधी रात

दूधिया चाँदनी से नहाए कभी
झुक हवाओं से अँखियाँ चुराए कभी
झूम जाए दिशाओं में कुछ बोलकर
कौन जाने कि क्या गुनगुनाए कभी

यों ही खिल खिल हँसे
डालियों में फँसे
श्वेतपाखी चिरैया जगे सारी रात
सुनो फूल बेला खिले आधी रात

एक फुँदना खुशी का हँसाए कभी
एक फाहा इतर का सुहाए कभी
टहनियों पर नखत सा लटकता हुआ
झिलमिलाए कभी, टूट जाए कभी

हाय मुश्किल सफर
और बाली उमर
मौन राखे बदरिया झरे सारी रात
सुनो फूल बेला खिले आधी रात

- पूर्णिमा वर्मन
१५ जून २०१५

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