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गमले में महक रही बेला
 

छज्जे पर गमले सजे हुए
उनमें कैक्टस ही उगे हुए
पर, एक दिवस मालिन आयी
अपने सँग इस पौधा लायी
फिर गमला एक हुआ खाली
अब उसमें चहक रही बेला!

देवी का मेला सजा हुआ
लहडू पर पुरवा लदा हुआ
है गाँव नम्बरी मोटर पर
है पास माँगता ‘पी-पी’कर
देवी के थान पहुँच आयी
माला में लहक रही बेला!

कितने दिन पर प्रियतम आये
कितनी बातें वे सँग लाये
मन में है, वह कुछ मान करे
पर, कैसे कोई धीर धरे?
देवी से वह आशीष मिला,
जूड़े में बहक रही बेला!

- राजेन्द्र वर्मा
१५ जून २०१५

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