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मोगरा मन का समर्पण
 

एक पल ठहरो
पढ़ो तो
मोगरा-मन का समर्पण

मोगरा की गन्ध से
सम्बन्ध बनते भावना के
भर गए रीते कलश
सब मोरपंखी कामना के
मोगरा से ही
महकता
रुप का श्रृंगार-दर्पण

मोगरा के गन्ध-उत्सव
जानते मन में ठहरना
आचरण के इत्र मंे
इस गन्ध को सीखो बदलना
आ गए
अन्तर्जगत तक
जब मधुर मकरन्द के क्षण

मोगरा की गन्ध बांधे
मेघ अम्बर में उड़े हैं
फिर किसी अलकापुरी से
नेह के रिश्ते जुड़े हैं
फिर किसी ने
मोगरा ऋतु का
किया आभार चित्रण

मौन आखर मोगरा की
गन्ध में ऐसे घुले हैं
मार्मिक प्रणय कथा के
पृष्ठ अभिमन्त्रित खुले हैं
पुरुरवा-मन को
मिला है
अप्सराओं का निमन्त्रण

एक पल ठहरो
पढ़ो तो
मोगरा-मन का समर्पण

- रमेश गौतम
१५ जून २०१५

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