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बतियाता है रात रात भर
 

दो बित्ते की देह
और नभचुम्बी जीवट
बेला तुम वाकई विरल हो

तानाशाह ग्रीष्म
हाथों में
लिए लुकाठी टहल रहा है
डरी
वनस्पतियों का जियरा
रह रह
भय से दहल रहा है
कड़ी चुनौती में
पग रोपे
धीर वीर
तुम खड़े अचल हो

निर्मल हँसी
गंध की सिन्नी
बाँट रहे
निरपेक्ष भाव से
तुम दधीचि
बलिदान हुए
सौ बार
अपर हित
बड़े चाव से
देवा दे वरदान
प्रणय का गजरा महके
इसीलिए तुम
खिले बुझे
जग में निश्छल हो

- रामशंकर वर्मा
१५ जून २०१५

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