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बेला
 

बेला जूही चम्पा के
बाजार चढ़े
बहुरे दिन नवगीतों के
नव राग गढ़े

जब-जब लगे आषाढ़
और सावन बरसे
साधे तीरथ जोग
परस को तन तरसे

फुलवारी का नेह
कौन सा मन्त्र पढ़े

आँगन बिंधे किवाड़
मदिर महुआ झाँके
भीगी बगुला पाँत
खुले मन के टाँके

जिद पर कलम दवात
पोथियों बीच अड़े

बिरहा कजरी आल्हा
के सुर ताल नए
बेला और मोगरा के
रस गन्ध बहे

मनुहारों के साथ
समय के पाँव बढ़े

सिर माथे चन्दन
तुलसी का धाम हुआ
आखर-आखर रामायण
का राम हुआ

कृष्ण बाँचते योग युद्ध
के बीच खड़े

- रंजना गुप्ता
१५ जून २०१५

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