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चमक बेला के फूलों की
 

भले दिन में कहीं भी पाँव अपने भागते साथी
कभी बेला सरीखे रात में सँग जागते साथी

गमकते फूल-से अपने कभी अहसास भी थोड़े
यही अहसास चुनकर वेणियों में टाँकते साथी

भले धौली रहीं ये मोगरे-सी पाँखुरी-पँखुरी
गुलाबी फूल कब कम गंध इनकी आँकते साथी

तुम्हारी गंध से ही तो सुवासित साँस है अपनी
तुम्हारे हम, हमारे तुम न क्योंकर लागते साथी

लुटाकर गंध अपनी देवता के पाद-पद्मों में
करो विश्वास, उनसे हम नहीं कुछ माँगते साथी

- पंकज परिमल
२२ जून २०१५

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