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पेड़ जैसे देवदारों के
 

रात में देखा स्वप्न मैंने
आ गये हैं दिन बहारों के
हैं कतारों में खडीं खुशियाँ
पेड़ जैसे देवदारों के

फूल से महके हुए चेहरे
चाहतों के रंग की फलियाँ
आँख में चहकी हुई सी थीं
चुलबुली उम्मीद की कलियाँ

भर गये लातूर प्यासे को
अनगिनत झरने फुहारों के

थालियों में मेहनती रोटी
झूमती है खिलखिलाती है
झोपड़ी की लाड़ली माँ भी
दूध बच्चों को पिलाती है

ज़िन्दगी जो है अपाहिज सी
दौड़ती है बिन सहारों के

जिस तरफ देखा उधर चेहरे
हँस रहे हैं, मुस्कुराते हैं
शोख़ पत्ते देवदारों के
सुरमई ताली बजाते हैं

दौड़ती नदियाँ विहँसती हैं
चूम कर कोपल किनारों के

काश ख़्वाबों की मेरी दुनिया
एक हकीकत में बदल जाये
नर्क सा ठहरा हुआ जीवन
स्वर्ग से सुख की गजल गाये

चाँदनी यों मेघ सी बरसे
झूम जायेँ मन सितारों के

- कृष्ण भारतीय  
 
१५ मई २०
१६

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