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चौखट के देवदार
 

मेरे घर की चौखट बन के
देवदार गंभीर हुआ है

कलतक वन का खूब दुलारा
संग हवाओं के गाता था
अंबर को छूने का हठकर
बार-बार सिर उचकाता था

भाँप समय की पदचापों को
देखो कितना धीर हुआ है

यहाँ मानवों की दुनिया ने
इसपर कृत्रिम लेप लगाये
छील-कुरेद तराशा जम के
निर्ममता से कील घुसाये

भौतिकतावादी आरे से
टुकड़े-टुकड़े चीर हुआ है

नहीं माँगता अब ये कलरव
हमें निहारे साँझ-सवेरे
अटल खड़ा सच्चा रखवाला
अपने धुन में बंसी टेरे

हे वनमाता! तुम्हें नमन शत
बेटा सचमुच वीर हुआ है

- कुमार गौरव अजीतेन्दु  
 
१५ मई २०
१६

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