अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

क्यों जी, कमल जी

 
क्यूँ जी कमल, बड़े उजले हो...
गुलाबी रंगत, पीली रंगत, सफेदी भी बहुत है
खुद तो कहीं भी आ उगते हो पानी में
कीचड, तालाब, कहीं पर भी
कभी एक टांग पे खड़े रहते हो
कभी पालथी लगाकर बैठ जाते हो
कभी करते हो नाच मोमबत्ती की लौ की तरह
सुना है पानी में ही राजपाठ है तुम्हारा
एक बात तो बताओ,
फिर खुद पे पानी क्यूँ नहीं ठहरने देते

--धीरेन्द्र सिंह
२१ जून २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter