अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

भँवरा और कमल

   
कभी आया निराले देस से
एक झूमता भंवरा
हर एक पत्ते हर एक कली
को चूमता भवंरा
हर एक खुशबू से थी उसको
ज़रा सी प्रीत की आशा
किसी पर हार दे जीवन
ऐसी जीत की आशा
बदल दे दंश को कोई
मधु जैसी मिठास में
कोई तो लक्ष्य बन जाये
उसकी नयी तलाश में
मगर जाने क्यों हर कली
बड़ी मगरूर बैठी थी
बड़े नाजों से खुशबू समेटे
दूर बैठी थी
किसी को फर्क क्या पड़ता
किसी के आने जाने से?
दिल दे के कोई प्रीत ले
भवरे दीवाने से?
बड़ा मायूस हो चला
वो बेसुध, प्रीत का प्यासा
रंगीली दुनिया का उसने
जो देखा रंग फीका सा
तभी आई कोई आवाज़
बड़ी कोमल, बड़ी मृदुल
ले कर खड़ा था प्रेम का
उदगार एक कमल
बड़ा ही अस्त व्यस्त था
उसका अस्तित्व कीचड़ में
शीर्ष मुस्कान से भरा
किन्तु पीड़ा थी धड़ में
मगर उस हाल में भी वो
लुटाता स्नेह भरा इत्र
मिल गयी भ्रमर को एक
प्रियतमा और मित्र
बड़े आश्चर्य से पूछा
ये सौन्दर्य कहाँ से पाया ?
वो बोला हाँ! सजल ने ही
मुझको कमल बनाया
इसी से सीखा है मैंने
विषमताओ में जीना
प्रेम के बदले पूजा और
घृणा के बदले प्रेम देना
आओ तुम्हे भी दूंगी आज
प्रेम का मकरंद
कहकर भ्रमर सहित
कमल की पंखुड़िया हुई बंद


मनीषा शुक्ला
२१ जून २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter