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यह सबक छूटे न हमसे

 
सीख लें हम सब कमल से
यह सबक छूटे न हमसे

पंक में रहकर न उसमें लिप्त होना
हलचलों के बीच स्थिर चित्त होना
पात पर उसके न रुकता जल कभी
और गीला कर न पाता पंक भी
कुछ न कुछ संदेश इसमें
कह रहा वह रोज सबसे
यह सबक छूटे न हमसे

कीच, दलदल में उलझता आदमी
क्यों कमल जैसा न बनता आदमी
रास्ता सच का न मिलता है कभी
या कि सच से दूर रहता आदमी?
झूठ, धोखा, छल बहुत है
सत्य का संधान कबसे?
यह सबक छूटे न हमसे

रश्मियों की थाप पर तन डोलता
सूर्य उगता तो कमल मुख खोलता
देखते हैं पर न हम कुछ सीखते
यह उजाला ज्ञान बनकर बोलता
तमस में ही खुश रहे हम
होश आया हाय जबसे
यह सबक छूटे न हमसे

गल्प में, मिथ में कमल के गान हैं
जलज के माने सुबह का भान है
नाभि से जगदीश के उगता कमल
और ब्रह्मा का वही सुस्थान है
लक्ष्मी हैं पद्मनाभप्रिया सुनो
मुक्ति देतीं गहन तम से
यह सबक छूटे न हमसे.

-- सुभाष राय
२१ जून २०१०

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