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द्वार आँगन खिलें
 
मुग्धकारी मनोहर सजीले सुमन,
ये विधाता के हाथों का सुन्दर सृजन

थाल चन्दन धतूरा सजाकर कनेर
पाँव छूकर करें शिव उमा को नमन

जेठ की चिलचिलाती हुई धूप में
तीन रंगों का मोहक हुआ आगमन

मुस्कुराते रहे डाल पर झूमते
जारती ही रही देह कोमल पवन

इस धरा का गरल देह अपने भरा
दूर करता हृदयरोग ज्वर औ ज्वलन

द्वार आँगन खिलें, राह चलते मिलें
खिलखिलाता रहे मास बारह चमन

अरुण शर्मा अनन्त
१६ जून २०१४

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