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याद बहुत आता है
 
याद बहुत आता है कनहल।
आँगन में लहराता कनहल।

कंक्रीटो के जाल बिछ रहे।
अब न दिखे मदमाता कनहल।

मुद्दत में कोई गुल खिलता।
फूलों से लद जाता कनहल।

ऋतु कोई भी आये जाये।
हर मौसम मुस्काता कनहल।

जी भर खिलना हर मुश्किल में।
हर पल ये समझाता कनहल।

--सीमा हरि शर्मा
१६ जून २०१४

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