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वर्षा आती देख कर, स्वागत
करे कनेर।
पूर्व संदेशा दे गया, बैठा काक मुँडेर।।
तरु कनेर आँगन खड़ा, मुझको रहा बताय।
खुशबू से सत्कर्म की, जीवन लो महकाय।।
सुर नर सबके मन बसा, मैं भोली अनजान।
पुहुप कनेर रख धूल में खेल रही दिनमान ।।
मन वासन्ती हो गया, खिलता देख कनेर।
विपदाएँ विस्मृत हुईं, मेरी शाम सवेर ।।
कितनी यादें हैं जुड़ीं, इस कनेर के संग।
इसकी छाया में मिले, जीवन के सब रंग ।।
प्रमुदित मन मधु बाँटता, सबको अपना मान।
तितली भँवरे बुलबुलें, सभी करें मधुपान ।।
पीत
वरन कुसुमन विविध, गेंदा ढाक बबूल।
पर भोले के मन चढ़ें, ये कनेर के फूल ।।
- धमयंत्र चौहान
१६ जून २०१४ |
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