| 
  
  
	
		| 
	
		| 
        
          
            |  |  |  
            |  | 
          
            
              | उपवन बाग मुँडेर पे, विकसित 
					पुष्प कनेर रंगों की छाई छटा, मंद सुगंध बिखेर।
 
 पर्व तीज़ त्योहार में, सजते पूजा थाल
 मनोभिलाषा पूरते, चढ़ देवों के भाल।
 
 कनक घण्टियाँ झूम के, देतीं शुभ सन्देश
 पादप मित्र बनें रहें, शुद्ध मिले परिवेश।
 
 अल्प स्नेह बर्ताव से, खिल उठते करवीर
 कठिन परिस्थिति सामने, मुस्कानों से चीर।
 
 
  पत्र 
					पंखुरी छाल से, दे औषध उपचार अपना सब कुछ वार दें, करते पर-उपकार।
 
 - ज्योतिर्मयी पंत
 १६ जून २०१४
 |  |  |  |  |