अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

विकसित पुष्प कनेर
 
उपवन बाग मुँडेर पे, विकसित पुष्प कनेर
रंगों की छाई छटा, मंद सुगंध बिखेर।

पर्व तीज़ त्योहार में, सजते पूजा थाल
मनोभिलाषा पूरते, चढ़ देवों के भाल।

कनक घण्टियाँ झूम के, देतीं शुभ सन्देश
पादप मित्र बनें रहें, शुद्ध मिले परिवेश।

अल्प स्नेह बर्ताव से, खिल उठते करवीर
कठिन परिस्थिति सामने, मुस्कानों से चीर।

पत्र पंखुरी छाल से, दे औषध उपचार
अपना सब कुछ वार दें, करते पर-उपकार।

- ज्योतिर्मयी पंत
१६ जून २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter