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क्षणिकाएँ (संकलित)
 

गरम दुपहरी में
जब चले झुलसाती
झूम झूम कर
कहता कनेर
छू सके तो
मुझको छू
फूल कनेर के

- उर्मिला शुक्ल


पीले कनेर के फूल
असाढ़ की बारिश
भीगी हुयी गंध
जी करता है
अंजुरी भर भर पी लूँ
गीली खुशबुओं वाली भाप
और चुका दूँ सारी किश्तें
चक्रवृद्धि ब्याज सी
बरस दर बरस बढ़ती प्यास की।

-पवन विजय


चारदीवारी से
टिक कर खड़ा है कनेर
हँसता है झुक झुक कर
बजाता है घंटियाँ
देखो तो
खुश है कितना

-पूर्णिमा वर्मन


बावरी टहनी
खिलखिला कर हँस पड़ी
नटखट पवन ने
यूँ ही जरा
हौले से छू लिया था
आँगन में बिखर गये
ढेर से कनेर के फूल
मेरे मन में भी
जाग उठी
तुम्हारे आने की आहट

- डा. मधु प्रधान


मेरे घर के सामने
पिछले दस सालों से खड़ा हुआ
वह कनेर का पेड़
कल काट दिया गया
मैं दूर से देखा करता था
उसके पीले फूलों का खिलना और झड़ना
आज मैं हर्षित हूँ या उदास
कई बार समझ नहीं आता !

-राहुल देव


कनेर के रंग
मौसम की हवा में
तितलियों से उडते है
मन के इर्द गिर्द
खूशबू बुनते है

-सरस्वती माथुर

७.
खिड़की पर
हँसते हैं फूल कनेर के
कमरे में ठिठकी है
नटखट सी शाम
गुपचुप कुछ कहतीं है
कानों में तितली
झुक जातीं पलकें कनेर की।

-सविता मिश्रा


८.

आँच रौंदती है
सूखने लगता है पानी
पार करने लगती है तृषा
सारी हदें..
कि, तत्पर हो उठता है कनेर !

९.
शिरीष.. मालती.. अमलतास..
कनेर के साथ..
दायित्वबोध से भर !
सूरज के निरंकुश दमन-चक्र के विरुद्ध
जारी है युद्ध
जमीन पर !

-सौरभ पांडेय
१६ जून २०१४

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