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बस गुपचुप जीता रहा, साँची
प्रीत कनेर
भाव लहर हिय बाँध ज्यों, शुचिमय शुद्ध सुमेर
शुचिमय शुद्ध सुमेर, संजोये भाव-प्रवणता
कभी चपल उल्लास, कभी निर्माप गहनता
मौन सभी संवाद, मगर कब इन्द्रिय लोलुप
प्रतिबिंबित उर अक्स, सँवारे वो बस गुपचुप
बुलबुल को उफ़ रोकती, काँटों जड़ी मुँडेर
मूक नयन ले ताकता, स्वप्निल खड़ा कनेर
स्वप्निल खड़ा कनेर, भुजाओं को फैलाये
मन में तो मल्हार, मगर वो कैसे गाये
तोड़े
हर प्रतिबन्ध, करे अठखेली चुलबुल
प्रीत रंग में रंग, मगन इतराए बुलबुल
डॉ. प्राची सिंह
१६ जून २०१४ |
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