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कनेर का प्यार
 
संतों सा देता रहा, फूलों का उपहार।
हर साधक पाता रहा, है कनेर का प्यार।।

बाबा सा मुझको लगा, प्यारा एक चरित्र।
बाल-वृद्ध सब जन रहे, उस कनेर के मित्र।।

पूजा की थाली सजी, मोहक पुष्प सुगंध।
पावनता बरसा रही, फिर कनेर की गंध।।

हँसते-मुस्काते खिले, ज्यों कनेर के फूल।
मंत्रमुग्ध सब रह गये, अपनी सुधबुध भूल।।

एक तरफ पीपल खड़ा, दूजी ओर कनेर।
उधर अगर छाया घनी, इधर फूल का ढेर।।

वैसे ही था मोहिनी, बगिया का रंगरूप।
पर कनेर ने दे दिया, पावन अतुल स्वरूप।।

- सुबोध श्रीवास्तव
१६ जून २०१४

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