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नेर का फूल
 
सिर्फ सुंदर नहीं होता
कनेर का फूल
उसमें छिपी होती है
मंदिर की खुशबू
बारिश में उसकी
हरी फैली पतियाँ
सावन ले आती हैं

नन्ही सी चिड़िया सी
फुदकती है
गर्मियों में
नवसुए सी शाखाएँ
लगती हैं मानो
रसभीगे फूल कनेर के
खुद एक मौसम हों

सच बासन्ती धूप में
धरती के आँचल पर
कनेरी हवाएँ
गति लय छंद
बाँध देती हैं और
सूरज की सतरंगी किरणों संग
नयी नयी कोंपलों से
बतियाती हैं

पातों पर भी नयी ऊष्मा
भर देती है
जब कनेर की डाल पर
फूलों संग हवाएँ
मँडराती हैं
तब मन के द्वार पर
पीले फूलों की
बंदनवार सज जाती है।

- डॉ सरस्वती माथुर
१६ जून २०१४

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