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फूल कनेरों के
 
सूर्यपंछियों की चुहलें औ'
फूल कनेरों के!

चाहे सीधे-सादे होवें
या बाँके रतनारे
कुछ संकेत हुआ ही करते हैं
मोहक मतवारे
किसी रंग में विरह-मिलन
तो किसी रंग उत्कंठा
उजले-पीले-लाल रँगों में 
मर्म प्रेम का सिमटा
चहक रहे हैं सब रंगों में
भाव चितेरों के!

धूप-छाँव के बीच बसाए
अनबूझे आमन्त्रण
लहक-महक ये बूटे करते
सुधियों-का अभिनन्दन
हरियाला रखता है
तन-मन को इनका सम्मोहन
हरि को भी श्रेयस्कर है
इनसे अपना आराधन
देख इन्हीं को जागा करते
भाग सवेरों के!

- अश्विनी कुमार विष्णु
१६ जून २०१४

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