अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

पीले फूल कनेर के
 
मुस्कानों की खुशबू बाँटो हर दुखिया को
टेर के
बड़े सवेरे मुझसे बोले
पीले फूल
कनेर के

हमको देखो
हमें सहेजा
नहीं किसी ने प्यार से
भूख प्यास को बिखरा जूझे
जग के दुर्व्यवहार से
जिसने दर्द
दिया हम देते
खुशबू उसे दुलार से
खाली हाथ नहीं लौटाया
कभी किसी को द्वार से

हर आँसू के मीत बनो तुम
बिना किसी भी
देर के

जो मीठे
फल देता उसको
दुनिया पत्थर मारती
सच कहने वाले को
जीभर कर दुत्कारती
नीवों में
गड़ने वालों की
कभी न होती आरती
अपने ही घर में अपमानित
होती देखी भारती

चलो निकालो काँटे चलकर
थके पथिक के
पैर के

- बटुक चतुर्वेदी
१६ जून २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter