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कनेर की बात
 
तुम कनेर की बात न छेड़ो
बचपन याद दिला जाता है!!

हरी भरी पतली डाली पर
एक नज़र रक्खूँ माली पर
किसी तरह से मिल जाए वो
रख दूँ पूजा की थाली पर
बाबा कहते हैं ठाकुर को
पीला फूल बहुत भाता है!

तेज दुपहरी लू झुलसाये
पर बचपन कैसे रुक जाये
वो मखमल की छुअनों वाला
प्यारा फूल बहुत ललचाये
आखें बंद करूँ तो अब भी
पूरा दृश्य उभर आता है!

- डॉ. प्रदीप शुक्ल
१६ जून २०१४

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