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ऋतु, प्रतिकूल न सह पायेंगे
यह गमलों के शेर
खिल, गुलाब जब मुरझायेंगे
देंगे साथ कनेर।
उपवन पर आते हैं झोंके
लू–लपटों के भी
सदा कहाँ रहते हैं
सुखकर दिन बसंत के जी
मास जेठ के जब आयेंगे
देंगे साथ कनेर।
दुख पीकर, मुख पर गहना
मुस्कानों का, पहना
वही सुखी है
जिसने सीखा, लहर–बहर सहना
शीथ–घाम जब डरपायेंगे
देंगे साथ कनेर।
मास बारहों
उन हृदयों की कली, खिली होगी
रहे कर्मरत जो
होकर निष्काम–कर्म–योगी
द्वार
ईश के जब जायेंगे
देंगे साथ कनेर।
– कृष्ण नन्दन मौर्य
१६ जून २०१४ |
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