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						पीले फूल कनेर के 
					पट अँगोरते सिन्दूरी बड़री अँखियन के 
					फूले फूल दुपेर के। 
					 
					दौड़ी हिरना 
					बन-बन अँगना  
					वोंत वनों की चोर भुर लिया 
					समय संकेत सुनाए, 
					नाम बजाए, 
					साँझ सकारे, 
					कोयल तोतों के संग हारे 
					ये रतनारे- 
					खोजे कूप, बावली झाऊँ 
					बाट, बटोही, जमुन कछारे 
					कहाँ रास के मधु पलास हैं? 
					बट-शाखों पर सगुन डालते मेरे मिथुन  
					बटेर के 
					पीले फूल कनेर के। 
					 
					पाट पट गए, 
					कगराए तट, 
					सरसों घेरे खड़ी हिलती- 
					पीत चँवरिया सूनी पगवट 
					सखि! फागुन की आया मन पे हलद चढ़ गई 
					मेंहदी महुए की पछुआ में 
					नींद सरीखी लान उड़ गई 
					कागा बोले मोर अटरिया 
					इस पाहुन बेला में तूने 
					चौमासा क्यों किया पिया? 
					यह टेसू-सी नील गगन में- 
					हलद चाँदनी उग आई री 
					उग आई री 
					अभी न लौटे उस दिन गए  
					 सबेर 
					के! 
					पीले फूल कनेर के। 
					 
					- नरेश मेहता 
					१६ जून २०१४ | 
             
           
         
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