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पीले फूल कनेर के
 
पीले फूल कनेर के
जैसे कोई
धूप हल्दिया
ले आया हो हेर के

मैली कुचली
डाल बैठ कर
चिड़िया शगुन मनाये
पुरवैया
कनबतिया कर के
मन ही मन सकुचाये
बैठ गया
मन मार चिरौटा
अपने मुहँ को फेर के

देख -देख के
ढंग अज़ब से
मौसम हुआ हठीला
धूल -धूसरित
हुआ अनमना
अंबर नीला -नीला
हार -थके
सब ठौर -ठिकाने
ऊँचे स्वर में टेर के

उजड़ गये
सपनों के जंगल
जो उगले थे सोना
औगढ़ -बाबा
ख़ुद निराश है
किसने मारा टोना
सलिला सोचे
कौन ले गया
उसका पानी घेर के !!

- डॉ रामेश्वर प्रसाद सारस्वत
१६ जून २०१४

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