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रंगों का उपहार कनेर
 
रंगहीन होते मौसम में
रंगों का उपहार कनेर

स्तब्ध खड़े हैं पेड़
हवा छुप कर है बैठी
धूप मवाली सी
फिरती है ऐंठी ऐंठी

सहमे डरे डरे आँगन में
राहत देता, प्यार कनेर

धरती ने यूँ
मनभावन शृंगार किया है
बना धूप का बूटा
तन पर सजा लिया है

प्रीत की खिड़की पर बैठा इक
मुस्काता संसार कनेर

नागफनी से चुभते
पल स्वीकार किये हैं
मुश्किल को आसानी
के आधार दिए हैं

मौसम की जलती आँखों को
सहलाता नीहार कनेर

-सीमा अग्रवाल
१६ जून २०१४

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