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ये कनेर के फूल
 
इनसे मिलकर अब भी
बीते पल हम जीते हैं
ये कनेर के फूल
तुम्हारी बातें करते हैं

कड़ी धूप में आँखें खोले
बैठा होता है,
ढलती शाम की हर आहट
पहचाना करता है
एक उदासी दिल पर जब भी
घिरने लगती है,
कली कोई वो नई खिला कर
हमें मनाता है
जीवन से हम दोनों ही ये सीखा करते हैं
आँखों में सावन के मोती सब ही रखते हैं

तुम आओ तो जीवन होगा
सुन्दर सा एक गीत
खिले हुए फूलों से झरता
नूतन सा संगीत
दो मन मिलकर इसी छाँव में
सुनने आएँगे,
इसके दो पत्तों से मिलकर
ताल बजाएँगे
ऐसी बातें हम कनेर से करते रहते हैं
पूरे होने वाले सपने बुनते रहते हैं

- सुवर्णा दीक्षित
१६ जून २०१४

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