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गाँव गाँव में
 

 

गाँव-गाँव में आज भी, दो अति सुलभ हक़ीम।
आँगन में तुलसी दिखे, द्वारे छाए नीम॥

मिलती रहती है जहाँ, शुद्ध-वायु निम छाँव।
रखती बीमारी वहाँ, सहज न अपने पाँव॥

नीम पत्तियाँ ढेर-सी, दीजै जहाँ जलाय।
मच्छर-दल हैं भागते, झटपट पूँछ दबाय॥

हरी पत्तियाँ नीम की, पानी धरो उबाल।
मलिन त्वचा के वास्ते, समझो उसे डिटाल॥

मुख में पैठी बास को, दें दातून ढ़केल।
मंजन-ब्रुस की कंपनी, उसके आगे फेल॥

-डॉ० डंडा लखनवी
२० मई २०
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