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नीम जहाज
 

 

रंग-त्वचा को परिभाषित कर नाहक स्वाद चखाऊँ क्या
हर टहनी में कितनी पत्ती होती हैं गिनवाऊँ क्या
किस मौसम का इस पर कैसा असर पड़े बतलाऊँ क्या
यार सैंकड़ों गुण हों जिस में उस की गाथा गाऊँ क्या


नीम समान विटप ‘चीनीबेरी’ विषधर कहलाता है
विष हट जाए तो यों समझो नीम वही हो जाता है
नीम सदैव जड़ों को ढूँढ व्यथा का मूल मिटाता है
किन्तु अधिक सेवन इसका नर को कापुरूष बनाता है


बदन मुसाफ़िर, दुनिया सागर, जिस में चलता नीम जहाज़
बदन परिंदा, दुनिया अंबर, नीम जहाँ पर है परवाज़
ऐसे गुणकारी तरुवर पर कहिये क्यूँ न करें हम नाज़
आर्यवर्त से उठ कर जिसने जग में हासिल किया फ़राज़

नवीन चतुर्वेदी
२० मई २०
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