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नीम की शीतल हवा
 

 

जला रही है दिये

गाँव के द्वार पर
खड़ा बरगद और
घर के भीतर
... बैठी नीम
दोनों हो गये हैं बूढ़े

आँखों से सूझता
नहीं है अब
फिर भी
देख रहे हैं राह उनकी
जो छोड़ गये
ये घोसला

कभी न कभी तो
लौटेंगे वे
सोचता बरगद
खड़ा है गाँव के
द्वार पर
और घर में
बैठी नीम
जला रही है दिये
उस राह पर
जिससे होकर
लौटेंगे वे।

-उर्मिला शुक्ला 
२० मई २०
१३

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