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दस्तखत पलाश के  

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वासंती समझौते
दस्तख़त पलाश के

गंधों के दावों का
एक बाग फूला
आँखों ने कलियों पर
डाल दिया झूला
कहाँ रहे कोयल के
आज मन हुलास के

आसमान छूने को
परचम लहराए
कौवों ने सुबह-सुबह
काँव गीत गाए
उगल रही तोती भी
शब्द कुछ भड़ास के

तेज़ हुई आँधी में
डोलते बबूल
डाल की गिलहरी भी
राह गई भूल
टिड्डी दल पाले है
ख़्वाब कुछ विकास के

-ब्रजनाथ श्रीवास्तव
२० जून २०११

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